वेबवार्ता/अजय कुमार वर्मा
कैबिनेट में NPR-2020 के लिए मंगलवार को 8,500 करोड़ रुपये का बजट मंजूर किया गया है।
नेशनल रजिस्टर ऑफ इंडियन सिटीजन (NRIC) के द्वारा 'अवैध प्रवासियों' और 'संदिग्ध नागरिकों' की पहचान भी की जाएगी क़ि 'संदिग्ध नागरिक' कौन होगा ? इसके बारे में अभी कोई परिभाषा नहीं तय की गई है। केंद्रीय मंत्रिमंडल ने राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (NPR) के लिए मंगलवार को 8,500 करोड़ रुपये का बजट मंजूर किया। देशभर में नेशनल रजिस्टर ऑफ इंडियन सिटीजन (NRIC) तैयार करने की दिशा में सरकार का यह दूसरा बड़ा कदम है। इसके पहले 31 जुलाई, 2019 को सरकार ने ऑफिशियल गजट में नोटिफिकेशन के द्वारा एनपीआर के लिए कदम आगे बढ़ाए थे।
जाने क्या है NRIC
NRIC असल में NRC ही है, बस अंतर यह होगा कि इसमें असम को शामिल नहीं किया जाएगा, जहां पहले ही एनआरसी लागू हो चुका है. देशभर में NRIC लागू करने से पहले एनपीआर तैयार किया जाएगा, जिसकी बाद में जांच और पुष्टि की जाएगी. इसमें न केवल 'सामान्य निवासियों' की सूची तैयार की जाएगी बल्कि 'अवैध प्रवासियों' और 'संदिग्ध नागरिकों' की पहचान भी की जाएगी। देशभर में अभी नागरिकता (संशोधन) अधिनियम 2019 (CAA) और एनआरसी का विरोध हो रहा है, क्योंकि इसमें बाहर से आए मुस्लिमों को नागरिकता नहीं देने की बात कही गई है, लेकिन एनपीआर में 'संदिग्ध नागरिकता' की पहचान की बात कही गई है। 'संदिग्ध नागरिकता' का प्रावधान सिटीजनशिप रूल्स, 2003 (रजिस्ट्रेशन ऑफ सिटीजन्स ऐंड इश्यू ऑफ नेशनल आइडेंडिटी कार्ड्स) में दिया गया है, जिसके तहत ही NPR तैयार किया जा रहा है।
जाने क्या है 'संदिग्ध नागरिकता'? और कौन माना जाएगा 'संदिग्ध नागरिक'
2003 रूल्स के उपनियम (4) के नियम 4 में कहा गया है कि, 'जनसंख्या रजिस्टर (NPR) के वेरिफिकेशन प्रक्रिया के दौरान किसी व्यक्ति या परिवार को 'संदिग्ध नागरिक' या 'संदिग्ध नागरिकता' माना जा सकता है. अब सवाल उठता है कि 'संदिग्ध नागरिकता' क्या है? आखिर किस आधार पर कोई व्यक्ति या परिवार को 'संदिग्ध नागरिक' माना जा सकता है? 2003 रूल्स के उपनियम (4) का नियम 4 'संदिग्ध नागरिकों' की बात करता है। हालाक़ि 2003 रूल्स में 'संदिग्ध नागरिकता' को परिभाषित नहीं किया गया है। यहां तक कि मुख्य कानून यानी 1955 के सिटीजनशिप एक्ट में भी इसके बारे में कुछ नहीं कहा गया है. सिटीजनशिप (संशोधन) एक्ट 2003 आने के बाद 2003 रूल्स लाए गए थे। एनपीआर और एनआरआईसी तैयार करने के लिए जिस 2003 रूल्स के तहत जो बुनियादी नियम और प्रक्रियाएं उपलब्ध की गई हैं, उनमें भी यह नहीं बताया गया है कि किसी व्यक्ति या परिवार को 'संदिग्ध' किस तरह से माना जाएगा. इसमें बस यही कहा गया है कि 'लोकल रजिस्ट्रार' इसे तय करेगा (उपनियम (4) नियम 4)।
एक बार जब कोई व्यक्ति या परिवार 'संदिग्ध' नागरिक मान लिया जाएगा, तो (a) उससे कहा जाएगा कि वह 'निर्धारित प्रोफार्मा' में कुछ जानकारियां दे और (b) उसे NRIC में शामिल किया जाए या नहीं इस बारे में अंतिम निर्णय से पहले उसे 'सब-डिस्ट्रिक्ट (तहसील या तालुका) रजिस्ट्रार' के सामने अपना पक्ष रखने का मौका दिया जाएगा। इस तरह एक तहसील या तालुका के रजिस्ट्रार को यह तय करने का पूरा अधिकार होगा कि कोई व्यक्ति भारतीय नागरिक होगा या नहीं और जो प्रोफार्मा इस आधार होगा, उसके बारे में भी कुछ तय नहीं किया गया है. तो यह साफ है कि यह पूरी कवायद स्थानीय अधिकारियों की मनमर्जी पर आधारित होगी और इसलिए इसमें इस बात की जबरदस्त गुंजाइश है कि इसमें मनमानापन हो या इसका दुरुपयोग हो। जनसंख्या रजिस्टर के प्रकाशन और किसी के नाम शामिल करने न करने पर आपत्ति के लिए पर्याप्त प्रावधान हैं, लेकिन इसके उपखंड (6) में जो प्रावधान हैं उससे कितना नुकसान होगा इसका अंदाजा नहीं लगाया जा सकता।
जाने 'संदिग्ध नागरिकता' के प्रावधान से कौन प्रभावी होगा ?
'संदिग्ध नागरिक' तय करने का जिस तरह से अधिकारियों को असीमित पावर मिल रहा है उससे साफ है कि इस श्रेणी में कोई भी आ सकता है. संवैधानिक एक्सपर्ट और हैदराबाद की NALSAR लॉ यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर प्रोफेसर फैजान मुस्तफा कहते हैं, 'आज के ध्रुवीकरण वाले माहौल में इस कठोर कानून के द्वारा नागरिकता के दायरे से बाहर करने के लिए मुख्य शिकार मुसलमान, उदारवादी और राजनीतिक विरोधी हो सकते हैं. इसी तरह गरीबों, निरक्षरों, भूमिहीनों, महिलाओं और अनाथ लोगों को भी संदिग्ध नागरिक माना जा सकता है. इससे भ्रष्टाचार को भी काफी बढ़ावा मिलेगा, क्योंकि संदिग्ध का ठप्पा हटाने के लिए अधिकारी घूसखोरी कर सकते हैं।
कुछ ऐसा ही आसाम में में देखने को मिलता है क़ि टीएन शेषन (पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त) द्वारा 1997 में लाया गया 'संदिग्ध वोटर' का ऐसा ही विचार असम में कितना हंगामा खड़ा कर चुका है। लोगों को मनमाने तरीके से संदिग्ध वोटर मान लिया गया और अब उन्हीं लोगों के बच्चों को असम की एनआरसी से बाहर कर दिया गया है। राज्य स्तर पर हुई गलती को राष्ट्रीय स्तर पर दोहराने की जगह हमें पिछली गलतियों से सबक लेना चाहिए होगा।
केंद्र ने सितंबर 2014 में ही 'पर्याप्त संख्या में डिटेंशन सेंटर' बनाने को कहा था
केंद्र सरकार कम से कम तीन बार सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों (UTs) को यह निर्देश दे चुकी है कि वे अपने यहां डिटेंशन सेंटर बनाएं. गृह मंत्रालय (MHA) ने तो संसद को लिखित में इसके बारे में जानकारी दी है. गृह मंत्रालय ने दिसंबर 2018 और दिसंबर 2019 में कई बार इस बारे में लिखित जवाब दिए हैं। राज्यसभा में 19 दिसंबर, 2018 को (सवाल संख्या 1030) दिए ऐसे ही एक लिखित जवाब में गृह मंत्रालय ने बताया था कि सभी राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों को पहली बार 10 सितंबर, 2014 को निर्देश जारी किया गया था (मोदी सरकार के गठन के चार महीने बाद ही) और इसके बाद फिर 7 सितंबर, 2018 को निर्देश जारी किया गया था। गृह मंत्रालय ने राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों से कहा था कि, 'जेल परिसरों से बाहर पर्याप्त संख्या में डिटेंशन सेंटर/होल्डिंग एरिया/कैम्प बनाया जाए.' वैसे तो ये 'अवैध प्रवासियों' के लिए बन रहे हैं, लेकिन ये कई तरह के सवाल भी खड़े करते हैं.
गृह मंत्रालय ने पर्याप्त संख्या में डिटेंशन सेंटर बनाने को कहा था
इस बारे में तीसरा निर्देश इस साल यानी जनवरी 2019 में दिया गया, जब सभी राज्यों एवं केंद्रशासित प्रदेशों को 'मॉडल डिटेंशन सेंटर मैनुअल' जारी किया गया। इसमें 'उन निर्देशों को दोहराया गया जिनमें गृह मंत्रालय ने समय-समय पर डिटेंशन सेंटर बनाने का निर्देश जारी किया था।
मौजूदा जेलों के बाहर ही बनेंगे डिटेंशन सेंटर
तमाम सवालों के जवाब में गृह मंत्रालय ने बताया है कि ऐसे डिटेंशन सेंटर 'जेल परिसरों से बाहर' बनाए जाने चाहिए क्योंकि केंद्र सरकार ज्यादा से ज्यादा लोगों को रखने की क्षमता तैयार करना चाहती है।
गौरतलब है कि असम के गोपालपुरा में ऐसा ही एक डिटेंशन सेंटर तैयार किया गया है (लोकसभा में 9 जुलाई, 2019 को गृह मंत्रालय द्वारा सवाल संख्या 2660 के जवाब से मिली जानकारी) और एक और एक डिटेंशन सेंटर बनाने के लिए 46.51 करोड़ रुपये मंजूर किए गए हैं। देश भर में चाहिए 26,658 डिटेंशन सेंटर। जिसकी 12.4 लाख करोड़ की आएगी लागत।
असम में एनआरसी की सूची से करीब 6 फीसदी लोग बाहर हो गए हैं। इस तरह वहां की कुल 3,30,27,661 की जनसंख्या में से 19,06,657 लोग एनआरसी की सूची से बाहर हैं। अगर यही औसत देखें तो एनपीआर में भी करीब 7.99 करोड़ लोग सिटीजनशिप टेस्ट में फेल हो सकते हैं। राष्ट्रीय जनसंख्या आयोग ने 2019 में देश में करीब 133.3 करोड़ जनसंख्या होने का अनुमान लगाया है।
जिन लोगों को अब भी संदेह हो उन्हें यह बात अच्छी तरह से समझ लेना चाहिए कि केंद्र सरकार ने एनपीआर 2020 के लिए मंगलवार को जो बजट मंजूर किया है, उसका जनगणना 2021 से कोई लेना-देना नहीं है। एनपीआर को सिटीजनशिप एक्ट 1955 के 2003 रूल्स के तहत किया जाता है, जबकि जनगणना 1948 के सेंसस एक्ट के तहत होती है. इसलिए यह आशंका निराधार नहीं है कि किसी की 'संदिग्ध नागरिकता' पर स्थानीय अधिकारी मनमाने तरीके से निर्णय लें और ऐसे लोगों के लिए डिटेंशन सेंटर तैयार हो रहे हैं।